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दो भाइयों की नैतिक कहानी(moral stories)
सुरेंद्रनगर में दो भाई रहते थे केशव और माधव । केशव और माधव बचपन से बहुत प्यार से रहता था, लेकिन केशव की शादी होने के बाद बीवी ने ऐसा रंग दिखाया कि, जायदाद को लेकर झगड़ा हो गया और झगड़ा इतना बढ़ गया कि, दोनों भाई एक ही मकान में अलग-अलग रहने लगे।
गुजरते वक्त के साथ जब केशव को एक सुंदर सी बेटी हुई। उसघर में एक छोटा सा फंक्शन किया गया और पूरे गांव को बुलाया गया । फिर भी अपने ही मकान में ऊपर रह रहे भाई को नहीं बुलाया गया ।
धीरे -धीरे केशव की बेटी बड़ी होने लगी, माधव उसे छुप छुप कर देखता । केशव और उसकी पत्नी अपनी बेटी को सिर्फ एक ही बात सिखाते ऊपर की तरफ कभी भी मत जाना ।
बेटी बोली —-क्यों?
उन्होंने कहा—– ऊपर एक भयानक राक्षस रहता है जो सुंदर तथा मासूम बच्ची को खा जाता है ।
छोटी बच्ची बोली —-आप लोग उसे भगा क्यों नहीं देते?
केशव की पत्नी बोली —–मैंने उसे भगाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह इतना बेशर्म है कि वह घर छोड़कर नहीं भागा।
छोटी बच्ची बोली —–मैं उस सीढ़ी पर कभी नहीं जाऊंगी । दोनों मां बाप ने बच्चे के दिमाग में यह बात बैठा दी थी ,लेकिन एक दिन बच्ची कागज का जहाज उड़ा रही थी तभी जहाज उड़ता हुआ सीढ़ी पर जाकर गिर जाता है। बच्ची डर जाती है कि वह अपना प्लेन कैसे निकाले।
ऊपर किसी को ना देख -कर बच्ची अपना प्लेन निकलने लगती है लेकिन उसका सर सीढ़ी पर बने रेलिंग में फंस जाता है। वह काफी कोशिश करती है लेकिन सर नही निकलता देख वह डर जाती है और काफी चीखने लगती है।
तभी ऊपर से माधव आ जाता है और बच्ची को निकाल कर बाहर कर देता है। बच्ची डरी हुई होती है और यह चिल्लाते हुई भागती है– नहीं राक्षस जी।
माधव बोलता है —–सुनो ……..
बच्ची का माधव के साथ दोस्ती
‘कहते हैं ना दिल में अगर प्यार हो तो जरा सा छूने से भी एहसास हो जाता है’
इसी तरह उस बच्ची को भी एहसास हुआ और बच्ची आते-जाते छुप छुप कर माधव को देखती । आखिर एक दिन माधव बड़ी सी चॉकलेट लेकर आता है और बच्ची धीरे-धीरे उसके पास आती है।
माधव बोला—– चॉकलेट खाओगी।
बच्ची बोली—– हाँ खाऊंगी ,पर आप तो मुझे नहीं खाओगे।
माधव बोला —–अरे नहीं मैं तुम्हें क्यों खाऊंगा ।
बच्ची बोली —–क्योंकि तुम तो राक्षस हो ना ,माधव हंसने लगता है और पूछता है —–किसने कहा ?
बच्ची बोलती है—– मम्मी पापा ने उससे कहा है , उस सीढ़ी पर कभी मत जाना ऊपर एक खतरनाक राक्षस रहता है। वह खूबसूरत और मासूम बच्ची को खा जाता है।
मैं भी तो मासूम बच्ची हूं, ना माधव हंसता है और कहता है ——हां ,पर मैं राक्षस नहीं हूं । राक्षस पहले रहता था, मैंने उसे मार कर भगा दिया ।
बच्ची जोर से खुशी के मारे पूछती है—— सच्ची में ।
माधव बोला —–हां। उसने अपने फोन में राक्षस दिखाने लगा ,उसने बोला —-देखो राक्षस के बड़े-बड़े सिंह हैं और बड़े बड़े दांत हैं, मेरे पास तो यह सब नहीं है। मैं तो तुम्हारा चाचा हूं । उस दिन पहली बार चाचा -भतीजी की दोस्ती होती है ।
फिर यह दोस्ती दिन पर दिन बढ़ती जाती है और गहरी होती जाती है । माधव बच्ची के साथ गेम भी खेलने लगता हैं और रोज चॉकलेट भी लेकर आता हैं ।
वह उसके लिए कागज की प्लेन भी बनाता है अब दोनों का प्यार इतना बढ़ जाता है कि वे दोनों एक साथ ही रहते हैं।
बिना देखे हुए नहीं रह सकते। बच्ची हमेशा यह देखती रहती थी कि पापा कब बाहर जाएं और मम्मी काम करके सो जाए ,जिससे वह चाचा के साथ जी भर के खेल सके। लेकिन उन्हें एक दिन खेलते हुए केशव की पत्नी देख लेती है ।
रात को केशव के आते ही मां परी की शिकायत कर देती है, तब केशव चिल्लाने लगता है— परी मना किया था ना तुझे, खबरदार जो अब से उस राक्षस की तरफ देखा तो।
बच्ची बोली—– वह राक्षस नहीं है वह बहुत अच्छे हैं, मेरे राक्षस चाचू ।
केशव उसे डांटने लगता है और कहता है—— दोबारा देख लूंगा तो टांग तोड़ दूंगा।
बच्चों का डर ज्यादा दिन तक नहीं रहता है एक-दो दिन बाद वह फिर माधव से मिलने लगती है और फिर दोनों खेलने लगते हैं । बच्ची अपने राक्षस चाचू से मिलकर बहुत खुश होती है ।
एक दिन फिर वह पकड़ी जाती है और केशव उसके साथ बुरा बर्ताव करता है । बच्ची का उस कमरे से बाहर निकलना बंद कर देता है और कहता है—- इस बार बाहर निकली तो सच में टांग तोड़ दूंगा और सच में दोनों बच्ची का कमरा बंद कर देते हैं।
बेचारी मायूस बच्ची बैठी रहती है । वही माधव मायूस सीढ़ी के पास खड़ा- खड़ा परी के कमरे का दरवाजा देखता रहता है । मासूम बच्ची
दिल की दूरी यह कैद बर्दाश्त नहीं कर पाती है और धीरे-धीरे टेंशन में परी की तबीयत खराब हो जाती है। डॉक्टर आकर चेक करता है और कहता है ——इसे कुछ नहीं हुआ है।
उसकी मां बोलती है —-तो फिर क्या हुआ है डॉक्टर साहब तो? फिर यह बीमार क्यों सी लग रही है ?
डॉक्टर बोला—– इसे अंदर ही अंदर कोई बात है जो परेशान कर रखा है। यह उसी का असर है। जब तक उसके अंदर से यह बात खत्म नहीं होगी यह ठीक नहीं होगी, अगर ऐसा रहा तो इसके जान को भी खतरा हो सकता है ।
बेसबरी से इंतजार कर रहा माधव डॉक्टर के बाहर आते ही पूछता है—- तो डॉक्टर भी उससे यही बात कहता है कि अगर इस के दिल में जो बात है अगर वह पूरी नहीं हुई तो उसकी जान को भी खतरा हो सकता है ।
यहां बच्ची कमरे में बैठी बार-बार ऊपर देखती रहती है। मम्मी भी और पापा भी बात करने की पूरी कोशिश करते हैं पर वह कोई जवाब नहीं देती। दोनों घबरा जाते हैं –जोर जोर से रोने लगते हैं तभी वहां माधव आ जाता है।
माधव को देख बच्ची राक्षस चाचू कह कर खड़ा हो जाती है।
केशव भी माधव से बोलता है—- हमारी बच्ची बीमार हो गई है । माधव बोलता है कुछ नहीं होगा हमारी परी को।
बच्ची राक्षस चाचू कहकर खड़ा होकर , माधव के गोद में चली जाती है और कहती है —-मुझे आपके साथ खेलना है ।
तभी डॉक्टर आ जाता है और कहता है —– लगता है कि बच्ची की इच्छा पूरी हो गई ,अब इसे कुछ नहीं होगा। यह खतरे से बाहर है लेकिन यह सब कुछ हुआ कैसे।
कैशव बोला ——बस यूं समझ लीजिए डॉक्टर साहब, मेरा खून कुछ समय के लिए मुझसे जुदा हो गया था ,इसलिए शायद ।
तब उसकी मां बोली—– आज मुझे परी ने सिखा दिया कि, अपना खून अपना होता है उसे कोई अलग नहीं कर सकता।
यह कहानी हमें सिखाती है कि, हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर रहना चाहिए और छोटी-छोटी बातों पर बुरा महसूस किए बिना एक-दूसरे के साथ अच्छे संबंध बनाने चाहिए।
मुझे उम्मीद है कि आप इस कहानी से सीखे गए पाठों को अपने जीवन में उतारेंगे और सभी के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाकर आगे बढ़ते रहेंगे और इसी तरह की हिंदी कहानियाँ(hindi kahaniyan new) पढ़ने के लिए हमारे फेसबुक ग्रुप से जुड़ें और इस वेबसाइट को बुकमार्क कर ले। धन्यवाद!